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The Truth about Feminism | Is Feminism Destroying Indian Society? | Dhruv Rathee

नमस्कार दोस्तों हाल ही में मैंने एनिमल फिल्म पर एक वीडियो बनाया था जिसमें मैंने उस फिल्म को समाज के लिए कैंसर बताया यह बात सुनकर कुछ लोगों ने कहा कि टॉक्सिक फेमिनिज्म का क्या क्या फेमिनिस्ट फिल्में समाज के लिए खराब नहीं है क्या तो आइए आज के वीडियो में जानते हैं फेमिनिज्म और पेट्रिया की को गहराई से आखिर क्या है फेमिनिज्म क्या इंपैक्ट पड़ता है फेमिनिज्म का सोसाइटी पर और आदमी किस तरीके से सफर कर रहे हैं यहां पर फेमिनिन जेंडर मैस्कुलर जेंडर न्यूट्रल जेंडर हिंदी में स्त्रीलिंग पुलिंग उस शब्द को लेके एक नया अर्थ  दिया गया है अक्सर सोशल मीडिया पर

The Truth about Feminism | Is Feminism Destroying Indian Society? | Dhruv Rathee

(00:33) दोस्तों जब भी मैस्कुलर आर्की और फेमिनिज्म जैसे मुद्दों की बात करी जाती है आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा कि ये लड़कियां ये औरतें या फिर ये लड़के हमेशा ऐसे ही होते हैं ऐसी आर्गुमेंट बहुत उठाई जाती हैं कि इन लड़कियों की भी तो गलती होती है ये औरतें भी तो ऐसा करती हैं वैसा करती हैं मानो जैसे कि एक तरफ लड़के हो और दूसरी तरफ लड़कियां हो आदमी सारे एक टीम में हैं और औरतें सारी दूसरी टीम में हैं सो सोचकर देखो ये बड़ी अजीब सी चीज नहीं है कि मेल्स और फीमेल्स को हमेशा दो अलग-अलग टीम्स में बांट दिया जाता है हर घर में

(01:06) किसी की मां होती है किसी की बेटी होती है किसी की बहन होती है किसी की वाइफ होती है तो ऐसे आर्गुमेंट इस्तेमाल करते वक्त हम कैसे कह सकते हैं कि ये लड़कियां हमेशा ऐसी ही होती है या ये औरतें हमेशा ऐसी ही होती है और दूसरी तरफ सभी आदमियों को एक टीम में रखने का भी कोई सेंस नहीं बनता ऐसे भी लड़के होते हैं जो लड़कियों के ऊपर एसिड फेंक देते हैं अगर किसी लड़की ने मना कर दिया तो क्या आप उनके साथ सेम टीम में होना चाहोगे असली डिवीजन जो यहां एजिस्ट करता है वो करता है पेट्रिया कल लोगों के बीच में और फेमिनिस्ट लोगों के बीच में

(01:34) क्या मतलब है इन शब्दों का आइए एक नजर डालते हैं डिक्शनरी पर पेट्रिया की एक सोशल सिस्टम होता है जहां पर आदमियों का कंट्रोल हो औरतों के ऊपर हिंदी में पेट्रिया आकी को कहा जा सकता है पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था एक ऐसा सिस्टम जहां पर सारी ताकत आदमियों के हाथ में होती है तो फेमिनिज्म की डेफिनेशन क्या हुई क्या फेमिनिज्म का मतलब हुआ जहां पर सारी ताकत औरतों के हाथ में होती है नहीं फेमिनिज्म की डेफिनेशन कुछ और है फेमिनिज्म एक ऐसी विचारधारा है जिसमें माना जाता है कि औरतों और आदमियों के बीच में पॉलिटिकल इकोनॉमिक और सोशल इक्वलिटी

(02:07) देखने को मिले यानी कि औरतों को उतने ही इक्वल राइट्स और अपॉर्चुनिटी मिले जितने कि आदमियों को मिलते हैं तो इवन दो फेमिनिज्म शब्द फीमेल से निकला है इसका मतलब यह नहीं कि औरतों को ज्यादा ताकत दी जा रही है आदमियों के कंपैरिजन में उसके लिए दूसरा शब्द एजिस्ट करता है मेटियर की यह शब्द पेट्रिया करकी का इक्विवेलेंट है जहां पेट्रिया आकी में आदमियों को औरतों से ऊपर माना जाता है वहीं मेट्री आर्की में औरतों को आदमियों से ऊपर माना जाता है लेकिन फेमिनिज्म का मतलब यह हुआ कि दोनों जेंडर्स में कोई भेदभाव ना हो कोई ऊंच नीच ना हो अब आप सोचोगे कि क्या इसका मतलब यह

(02:39) हुआ कि एक आदमी भी फेमिनिस्ट हो सकता है बिल्कुल हो सकता है इनफैक्ट कोई भी रैशनल और समझदार आदमी फेमिनिस्ट ही होगा फॉर्मर यूएस प्रेसिडेंट बैरक ओबामा ने एक बार ये कैसे लिखा था जिसमें उन्होंने अपने आप को फेमिनिस्ट कहा था लेजेंड ऑथर सलमान रशदी से एक बारी जब पूछा गया कि क्या वह फेमिनिस्ट है तो उन्होंने जवाब दिया हां होने के लिए और है क्या या तो आप एक फेमिनिस्ट होंगे या एक बेवकूफ आपके पास यही दो चॉइस है हॉलीवुड फिल्म मेकर डैरिन एरन ऑस्की से जब सेम सवाल पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि ये क्या स्टुपिड क्वेश्चन है ऑफकोर्स वो एक फेमिनिस्ट है

(03:13) इंडियन एक्टर राहुल बोस का भी सिमिलर जवाब था इस सवाल को लेकर उन्होंने कहा ऑफकोर्स मैं एक फेमिनिस्ट हूं अगर आप इंसानियत में यकीन रखते हो तो आप भी एक फेमिनिस्ट होंगे तो बहुत से फेमस मेल सेलिब्रिटीज अपने आप को ओपनली फेमिनिस्ट कहते हैं हॉलीवुड एक्टर्स क्रिस एम्सवर्थ रायन गोस्लिंग इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में फरान अख्तर आमिर खान अक्सर इन लोगों ने आवाज उठाई है कि औरतों को इक्वल राइट्स दिए जाए आदमियों के बराबर लेकिन अगला सवाल यह कि क्या औरतें पेट्रिया कल हो सकती हैं इसका भी जवाब हां है बिल्कुल हो सकती हैं देखिए डॉक्यूमेंट्री आई थी द वर्ल्ड बिफोर हर

(03:48) उसकी एक क्लिप मैं आपको दिखाना चाहूंगा त्या बाईने केवल हट्टी पणा सा करियर करियर करत बाहर पड़ना विश्व हिंदू परिषद ने एक दुर्गा वाहिनी कैंप ऑर्गेनाइज किया था लड़की यों के लिए जो इंस्ट्रक्टर है वो खुद एक औरत है वो लड़कियों से कह रही है कि क्या यह वाकई जरूरी है कि तुम घर से बाहर निकलो अपना करियर बनाओ क्या यह जरूरी है आवश्यक आए का ये सोच बड़ी कॉमन सेंस के खिलाफ जाती है कि आखिर एक औरत क्यों चाहेगी कि उसे इक्वल राइट्स ना मिले लेकिन सच बात यही है कि बहुत सी औरतों की देश में ऐसी ही पेट्रिया कल सोच है ये सब सोशल कंडीशनिंग का असर है इस वीडियो में ये औरत

(04:25) बताती है कि कैसे बचपन में इनकी मां ने इन्हें थप्पड़ मारा था जब उन्होंने अपने आप को शिष्य में देखा तो इनसे कहा गया कि तुम्हें पढ़ना लिखना आता है काफी है हायर एजुकेशन की कोई जरूरत नहीं तुम्हें दुनिया भर में ऐसे पेट्रिया कल विचारों के लिए अक्सर रीजंस दिए जाते हैं कि भाई ये तो हमारा ट्रेडिशनल है ये या फिर हमारा रिलीजन हमें यह सिखाता है समाज में अक्सर लोगों की बड़ी राय होती है इसको लेकर कि एक आदर्श महिला कैसी होनी चाहिए पति परमेश्वर का रूप होता है एबीपी न्यूज़ ने अपने आर्टिकल में गरुड पुराण का कोट किया है कि अच्छी पत्नी वो है जो पति की आज्ञा

(04:58) का पालन करती है पत्नी की के लिए पति के चरणों में ही स्वर्ग होता है किसी भी औरत के लिए उसके परिवार की खुशी ही उसकी खुशी होती है मां बने बिना तो स्त्री अधूरी होती है आपने अक्सर लोगों को अपने आसपास ऐसी बातें कहते हुए सुना होगा औरत त्याग की मूर्ति होती है केक के अगर चार पीस बचे हैं और पांच लोग हैं खाने वाले तो औरत हमेशा कहती है कि मुझे केक पसंद नहीं आप लोग खा लो और क्या कहा जाता है लड़की ज्यादा पड़ जाएगी तो हाथ से निकल जाएगी लड़कियों को खुलकर जोर से हंसना शोभा नहीं देता लड़की को घरेलू सुशील कन्या होना चाहिए इस तरीके की बातें बहुत ही कॉमन है

(05:32) हमारी सोसाइटी में और जो मास मीडिया है वो भी इन बातों को बढ़ावा देता है ये सो कॉल्ड आदर्श बहू के कैरेक्टर्स जो एकता कपूर के सास बहू के सीरियल्स में होते हैं हमेशा औरतों को लेकर एक रिग्रेसिव सोच दिखाई जाती है इन सीरियल्स में या फिर संदीप मांगा की फिल्में देख लो एनिमल या कबीर सिंह जैसी इन सबका असर क्या पड़ता है हमारे समाज में कि बहुत सी लड़कियां इस आदर्श महिला के स्टैंडर्ड को फिट करने के लिए इन विचारों को एक्सेप्ट करने लगती हैं और ये वो इसलिए करती हैं ताकि सोसाइटी से फैमिली से उन्हें एक्सेप्टेंस मिले साइकोलॉजी में इस फिनोमिना को नॉर्मेटिव

(06:05) कन्फॉर्मिंग कहा जाता है स्कूल में भी टीनेजर्स अक्सर जब पियर प्रेशर का शिकार बनते हैं वो भी यही फिनोमिना है एक छोटे लेवल पर इसका एग्जांपल हो सकता है आप एक ग्रुप में बैठे हो और कोई जोक मारता है सब उस जोक पर हंसने लग जाते हैं लेकिन आपको वो जोक इतना फनी नहीं लगता और आपको एक्चुअली में हंसी नहीं आती उस जोक पर लेकिन आप भी हंसने लग जाते हो ताकि उस ग्रुप का हिस्सा बन सको ग्रुप का जो नॉर्म है उसके स्टैंडर्ड्स को कंफर्म कर सको नॉर्मेटिव कन्फॉर्मिंग बहुत सी औरतें समाज में एक्सेप्टेंस पाने के लिए इन पेट्रिया कल विचारों को अडॉप्ट कर लेती हैं यही

(06:38) कारण है कि थ्रू आउट द हिस्ट्री हमें ऐसी बहुत सी औरतें देखने को मिली जो औरतों के इक्वल राइट्स मिलने के खिलाफ ही प्रोटेस्ट कर रही थी नेपोलियन वाले वीडियो में मैंने आपको बताया था कि कैसे फ्रांस के जो लेफ्ट विंग रेवोल्यूशन थे उस समय के वो भी औरतों के राइट्स के खिलाफ थे उन्होंने डिक्लेरेशन ऑफ द राइट्स ऑफ मैन एंड ऑफ द सिटीजन इंप्लीमेंट किया था लेकिन औरतों को राइट्स नहीं दिए गए थे एक जेके बिन के पॉलिटिशियन शमेट ने उस वक्त कहा था कि आदमियों को ड्यूटीज दी गई है नेचर के द्वारा हंट करने की खेती करने की पॉलिटिशियन बनने की लेकिन औरतों को

(07:09) ड्यूटीज दी गई हैं घर संभालने की और मदरहुड की ये कितनी शेमलेस बात है कि औरतें पॉलिटिकल राइट्स डिमांड कर रही हैं अपने लिए क्या वो आदमी बनना चाहती हैं बहुत सी औरतें इस ओपिनियन से एग्री करती थी उस वक्त इवन 100 साल बाद लंदन में इस साल 1908 में एक औरत थी जिसने वूमेंस नेशनल एंटी सफरेज लीग बनाई इस औरत का का नाम था मेरी और इसने कहा कि मुझे मेरे नाम से मत बुलाओ मुझे मेरे हस्बैंड के नाम से बुलाओ इसके हस्बैंड का नाम था हम फ्री वार्ड तो इसने अपने आपको को बुलाया मिसेस हफ्री वार्ड यह कोई इलिटरेट औरत नहीं थी इनफैक्ट ये एक बेस्ट सेलिंग नोवलिस्ट थी

(07:43) इसे इंटरनेशनल फेम मिला था इसने ऑक्सफर्ड में औरतों की एजुकेशन को प्रमोट भी किया था लेकिन यह औरतों को वोटिंग राइट्स देने के सख्त खिलाफ थी इनका मानना था कि सिर्फ आदमी ही कांस्टीट्यूशनल लीगल फाइनेंशियल मिलिट्री और इंटरनेशनल प्रॉब्लम सॉल्व कर सकते हैं अब इससे 70 साल और आगे चलो साल 1972 जो कि लिटरली सिर्फ 50 साल पहले की बात है अमेरिका इक्वल राइट्स अमेंडमेंट पास करने वाला था औरतों और आदमियों को इक्वल राइट्स देने के लिए लेकिन एक औरत ही थी जो इसके खिलाफ खड़ी थी एक अमेरिकन लॉयर फिलिस लेफी इन्होंने और औरतों को मोबिलाइज

(08:17) किया कि वो इस लॉ के खिलाफ प्रोटेस्ट करें आज के जमाने में भी जहां ढेरों औरतें अलग-अलग फील्ड्स में इतिहास रच चुकी हैं कल्पना चावला जैसी औरतों ने स्पेस एक्सप्लोरेशन किया है औरतें साइंटिस्ट बन रही हैं मैथमेटिक बन रही हैं लेकिन पेट्रिया कल सोच कुछ औरतों से अभी भी गई नहीं है कुछ ऐसी औरतें हैं जो आज के दिन भी कहती हैं कि फेमिनिज्म फालतू है औरतें और आदमी इक्वल कैसे हो सकते हैं देखो उनकी बॉडीज अलग-अलग हैं आदमी बच्चों को पैदा तो नहीं कर सकते तो वो इक्वल कैसे हो सकते हैं ये फालतू फेमिनिज्म औरत मर्द के बराबर होती है यह सब सोचने की और उस परे विश्वास

(08:51) करने की कोई जरूरत नहीं है मैं तो यही बोलूंगी बाकी हम बराबर नहीं है जिस दिन आदमी प्रेग्नेंट होना शुरू हो जाएगा तब बराबर हो जाएंगे नहीं हो सकते बराबर ये आर्गुमेंट बड़ी इलॉजिकल सी है यह बात सच है कि आदमी और औरतों में दो-तीन ऑर्गन्स हैं जो अलग-अलग होते हैं लेकिन कम से कम 70 75 ऐसे ऑर्गन्स हैं जो आदमी और औरतों के अंदर सेम होते हैं दो आंखें एक नाक दो कान ये आदमी में भी होते हैं औरतों में भी होते हैं ये बात सच है कि जेंडर अलग-अलग है लेकिन ऐसा नहीं है कि औरतें कोई अलग स्पीशीज से बिलोंग करती हैं दोनों ही होमोसेपियंस हैं यहां पर और इंग्लिश में

(09:22) यहां दो शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है सिमिलर और इक्वल इक्वल राइट्स पाने के लिए आपको इक्वल होना जरूरी नहीं आप सिमिलर हो वो काफी है कुदरत डाइवर्सिटी बनाती है मगर भेदभाव नहीं बनाती वो भेद बनाती है भेदभाव नहीं बनाती नेचर मेक्स डाइवर्सिटी बट नॉट हायरा की नॉट इन इक्वलिटी कुदरत के बनाए भेद को समाज भेदभाव में डिस्क्रिमिनेशन में इन इक्वलिटी में बदल देता है औरतें बच्चों को जन्म देती हैं इसलिए उन्हें मैटरनिटी लीव मिलता है लेकिन जब ऑफिस में औरतें काम करती हैं तो उन्हें आदमियों के बराबर पे किया जाना चाहिए इस बात में कंफ्यूजन कैसा हां आदमी और औरत टोटली

(10:03) सिमिलर नहीं है एक दूसरे के लेकिन एक ब्लैक आदमी और वाइट आदमी भी टोटली सिमिलर नहीं है एक दूसरे के एक ऐसा आदमी जो दो पैरों पर चल सकता है और एक ऐसा आदमी जो व्हील चेयर पर बैठा है वो भी टोटली सिमिलर नहीं है एक दूसरे के एक समझदार आदमी और एक बेवकूफ आदमी में भी फर्क होता है लेकिन इक्वल राइट्स सबको दिए जाते हैं इन डिफरेंसेस की वजह से यह तो नहीं कहा जाता ना कि इस टाइप के आदमियों को राइट्स नहीं मिलने चाहिए एक बराबर राइट्स नहीं मिलने चाहिए हर इंसान में दूसरे लोगों के कंपैरिजन में छोटे-बड़े डिफरेंसेस एजिस्ट करते हैं लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि

(10:33) जो दो पैरों पर चल सकता है उसे वोटिंग राइट्स दिए जाए जो व्हील चेयर पर बैठता है उसे वोटिंग राइट्स ना दिए जाए ये डिफरेंसेस इक्वल राइट्स ना देने का कारण नहीं बन सकते तो घुमा फिरा के हम उसी पॉइंट पर वापस आते हैं कि जो फेमिनिस्ट स्ट्रगल है वो आदमी वर्सेस औरत की लड़ाई नहीं है बल्कि पेट्रिया कल लोग वर्सेस फेमिनिस्ट लोगों की लड़ाई है और यह लड़ाई ना सिर्फ औरतों को इक्वल राइट्स देने की लड़ाई है बल्कि आदमियों के राइट्स की भी लड़ाई है सही सुना आपने मेंस राइट्स बहुत से मेंस इश्यूज के पीछे भी कारण यही पेट्रिया की की विचारधारा है सुनकर थोड़ा

(11:07) कन्फ्यूजिंग लग रहा होगा लेकिन एग्जांपल से समझाता हूं अगर मैं आपसे कहूं दोस्तों अनइंप्लॉयड यूथ एक बेरोजगार इंसान की फोटो इमेजिन करो अपने दिमाग में क्या फोटो इमेजिन करी आपने आपने पक्का एक बेरोजगार आदमी को इमेजिन किया होगा एक बेरोजगार लड़के को इमेजिन किया होगा लड़की को नहीं ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे समाज में सोच अक्सर देखने को मिलती है कि लड़की अगर बेरोजगार है है तो फिर भी उसकी शादी कराई जा सकती है वह हाउसवाइफ बन सकती है लेकिन अगर एक लड़का बेरोजगार है उफ वो तो बड़ी मुसीबत वाली बात हो गई आदमियों पर बेरोजगार ना होने का प्रेशर कहीं ज्यादा

(11:41) और है औरतों के कंपैरिजन में पेट्रिया कल विचारधारा कहती है कि औरतें हमेशा घर में काम करेंगी और आदमी को हमेशा पैसे कमाने होंगे और अगर औरत भी नौकरी कर रही है और पैसे कमा रही है तो आदमी को उससे ज्यादा पैसे कमाने होंगे नहीं तो लोग क्या कहेंगे लोग कहेंगे अरे यह तो अपनी गर्लफ्रेंड से खर्चा करवाता है किस टाइप का मर्द है ये अरे ये आदमी होकर औरत की कमाई खाता है शर्म नहीं आती इसे अरे तुमसे ज्यादा तो तुम्हारी बीवी कमाती है और जैसा मैंने पहले बताया था बहुत सी लड़कियां और औरतें भी इसी पेट्रिया कल सोच का शिकार हैं तो वो भी कहती हैं कि हमें तो एक ऐसा हस्बैंड

(12:14) चाहिए जो हमसे ज्यादा कमाता हो अरेंज मैरिज के लिए इंकार कर देंगे अगर लड़का हमसे ज्यादा नहीं कमाता तो और यही पेट्रिया कल माइंडसेट आदमियों की हाइट को लेकर भी होता है लंबी औरतों को लंबे आदमी पसंद होते हैं लेकिन छोटी हाइट वाली औरतों को भी लंबे आदमी पस पसंद होते हैं अगर बाय चांस किसी की वाइफ की हाइट हस्बैंड की हाइट से ज्यादा निकल जाए तो लोग क्या कहते हैं अरे इस आदमी से तो ज्यादा हाइट इसकी बीवी की है यह कैसी जोड़ी है लोग मजाक बनाते हैं इस चीज का वही पिछड़ी हुई पेट्रिया कल सोच की वजह से अगर आप एक आदमी हो मान लो आप अपनी गाड़ी में बैठकर जा रहे

(12:47) हो अपनी वाइफ या गर्लफ्रेंड के साथ और सामने से एक गाड़ी वाला आता है जो आपकी गाड़ी पर खरोच मार देता है गलती उसकी होती है लेकिन वह अपनी गाड़ी से बाहर निकलकर आपको गालियां देना शुरू कर देता है तो आप क्या करोगे ऐसी सिचुएशन ज्यादातर लोग क्या करेंगे वो भी अपनी गाड़ी से बाहर निकलकर उल्टा दूसरे को गालियां देना शुरू कर देंगे लेकिन गौतम बुद्ध ने कहा था ही गेव मी ब्यूस आई डिन टेक देम सो द अबूस रिमन विद हिम उसने मुझे गालियां दी मैंने ली नहीं तो गालियां उसी के पास रही ऐसी सोच एक समझदार आदमी के लिए सेंस बनाती है लेकिन पेट्रिया कल सोच क्या

(13:20) कहती है तेरी बीवी के आगे उसने तुझे गालियां दी और तू सुनकर चला गया कैसा मर्द है भाई तू उसका मुंह तोड़ना चाहिए था तुझे तू फिसड्डी है अब तेरी बीवी क्या सोच अपने मन मन में और इसी पेट्रिया कल माइंडसेट की वजह से समाज मजबूर करता है कि वह आदमी भी उल्टा दूसरे को गाली दे और लड़ाई करे उसके साथ वहां जा लेकिन क्या लड़ाई करने से प्रॉब्लम खत्म हो जाएगी बिल्कुल भी नहीं इमेजिन करो वो दूसरा गाड़ी वाला वोह एनिमल फिल्म के रन विजय जैसा है वो एक बड़ा अमीर आदमी है कानून की उसे कोई परवाह नहीं अपने साथ एक रिवॉल्वर लेकर चलता है या बेसबॉल बैट लेकर

(13:56) आता है फिर क्या करोगे आप फिर आप फ्रस्ट्रेशन में आकर वापस मुड़ लोगे उससे माफी मांगोगे आपकी जो मेल ईगो है वो हर्ट हो जाएगी अरे कुछ नहीं भैया कुछ नहीं लोग आपका फिर भी मजाक बनाएंगे अरे ये देख कैसा मर्द है ये ये तो मार खा के आ गया माफी मांग कर आ गया ये बहुत से रिसर्च पेपर्स हैं जो इस बात को साबित करते हैं कि आदमी औरतों से ज्यादा लड़ाइयां में उलझते हैं 2022 में रिलीज हुई द स्टेट ऑफ यूके बॉयज रिपोर्ट ने बताया कि कैसे वायलेंस को नॉर्मलाइज किया जाता है और यह माना जाता है कि लड़का जब बड़ा हो रहा है तो वायलेंस होना एक नेचुरल पार्ट है बड़े होने के

(14:32) प्रोसेस में लेकिन प्रॉब्लम यहां सिर्फ वायलेंस की नहीं है प्रॉब्लम मेंस लोनलीनेस की भी है अब आपको सुनकर लगेगा यार ये कैसे हो सकता है ये मेंस की लोनलीनेस फेमिनिज्म और पेट्रिया की से कैसे रिलेटेड है लेकिन रिलेशन है दोस्तों और बड़ा तगड़ा रिलेशन है पेट्रिया कल माइंडसेट एक आदमी को रोने नहीं देता अगर कोई लड़का रोता है तो समाज उससे कहता है कि अरे आदमी होकर रोता है एक कहावत है ना कि बॉयज डोंट क्राई लड़के नहीं रोते यार ओ देवदास छोड़ ना यार लड़के ऐसे नहीं रोते रोना तो छोड़ो पेट्रिया कल सोच आदमियों को किसी भी तरीके का नेगेटिव इमोशन नहीं

(15:09) एक्सप्रेस करने देती अगर कोई लड़का अपने मेल फ्रेंड्स के साथ स्ट्रेस के बारे में बात करेगा अपनी प्रॉब्लम्स के बारे में बात करेगा तो उसे इमोशनली वीक कंसीडर किया जाएगा उसे कहा जाएगा कि अरे क्या तू लड़कियों की तरह इमोशनल हो रहा है यार हमारे समाज में जो मेल फ्रेंडशिप्स होती हैं वो किन एक्टिविटीज में एक्सप्रेस होती है लड़कों को अक्सर एक दूसरे के साथ सिनेमा हॉल में मूवी देखना जाना पसंद है क्रिकेट मैच खेलना पसंद है या पार्टी करना पसंद है लेकिन औरतों की जो फ्रेंडशिप्स होती हैं वो ज्यादा इंटिमेट और इमोशनल होती है लड़कियां अपने दोस्तों के साथ

(15:40) ज्यादा खुलकर बात करती हैं अपनी प्रॉब्लम्स एक्सप्रेस करती हैं लेकिन अगर कोई लड़का ऐसा कर ले तो समाज उसे एक्सेप्ट नहीं करेगा इसी रीजन से मेंस लोनलीनेस एक सेपरेट इशू बन जाता है जब एक लड़का डिप्रेस्ड फील करता है तो उसे अपने डिप्रेशन को अंदर ही अंदर दबाए रखने को मजबूर किया जाता है किसी भी तरीके का ग्रीफ किसी भी तरीके की इमोशनल प्रॉब्लम्स को ओपनली एक्सप्रेस करना सोसाइटी में एक्सेप्टेबल नहीं माना जाता इतना इमोशनल कैस्ट्रेशन दोस्तों कि वो इमोशनल इं इंटेलिजेंस से वंचित रह जाता है और इसका नतीजा क्या होता है दुनिया भर में सुसाइड

(16:16) के कारण मारे जा रहे लोगों को अगर आप देखोगे तो आदमियों में यह रेट औरतों से कहीं ज्यादा है इंडिया में भी सरकार के एनसीआरबी डाटा के अनुसार आदमियों में आत्महत्या करने का रेट ढाई गुना ज्यादा है औरतों के कम कंपैरिजन में इन सभी प्रॉब्लम्स के पीछे क्या कारण है पेट्रिया कल सोच और पेट्रिया की इसलिए जब फेमिनिस्ट कहते हैं स्मैश पेट्रिया की इसका मतलब यह नहीं कि वह आदमियों के खिलाफ है पेट्रिया की एक ऐसी सोच है जो औरतों और आदमी दोनों की जिंदगियां तबाह कर रही है जब हम इंडिया में फेमिनिज्म की बात करते हैं तो कमला भसीन का नाम काफी ऊपर आता है आज से 7 साल

(16:50) पहले उन्होंने ये टेड एकस स्टॉक दी थी जिसमें उन्होंने समझाया था कि कैसे पेट्रिया की आदमियों को डी ह्यूमनाए रोने नहीं दिया जाता आपको आपकी मां गुजर गई लड़कों को रोने नहीं दिया जाता इमोशनल कैस्ट्रेशन अगर आप ये पूरी टेड्स टॉक देखना चाहते हैं इसका लिंक मैंने नीचे डिस्क्रिप्शन में डाल दिया है वहां क्लिक करके देख सकते हैं इसके अलावा भी इंटरनेशनली भी इन मुद्दों को अक्सर रेस किया गया है जैसे कि केसी जे की फेमस डेक्स टॉक जिस पे एक करोड़ से ज्यादा व्यूज है फेमिनिस्ट टॉकिंग अबाउट मेनस राइट्स देर इज नो नाइंग दैट देर आर मेनी

(17:23) ह्यूमन राइट्स इश्यूज दैट यूनिकल और डिप्रोपिनेट अफेक्ट मेन स् फर्ड यूनिवर्सिटी की एंजेलिका फेरेरा इन्होंने किताब लिखी मेन विदाउट मेन और इस किताब में एक्सप्लेन किया गया है कि कैसे मेनस लोनलीनेस एक फेमिनिस्ट इशू है अगर हम इतिहास में देखें तो हमें राजा राममोहन रॉय को भी एक फेमिनिस्ट कंसीडर करना चाहिए क्योंकि उन्होंने सती के खिलाफ कैंपेन किया और ईश्वर चंद्रा विद्यासागर जिन्होंने विडो रीमैरिज को प्रमोट किया हमारे ये सोशल रिफॉर्मर्स आदमियों के खिलाफ नहीं थे बल्कि औरतों को इक्वल राइट्स देना चाहते थे और यहां अगर इंडियन

(17:55) फेमिनिस्ट की बात करें तो हम सावित्रीबाई फूले को कैसे भूल सकते हैं इंडिया की वन ऑफ द ग्रेटेस्ट फेमिनिस्ट्स उन्होंने अपनी दोस्त फातिमा शेख के साथ पहला लड़कियों का स्कूल बनाया इंडिया में समाज की तरफ से उन्हें इतना गुस्सा सहना पड़ता था कि लोग उन पर गोबर फेंकते थे वो स्कूल जाते वक्त एक स्पेयर साड़ी अपने साथ लेकर जाती थी इसलिए क्या सावित्रीबाई फूले आदमियों के खिलाफ थी ऑब् वियस नहीं इनफैक्ट उनके हस्बैंड ज्योतिराव फूले थे जिन्होंने उन्हें सिखाया अगर आप सावित्री भाई फूले के बारे में और डिटेल में जानना चाहते हैं तो कुकू एफएम पर यह बढ़िया ऑडियो बुक

(18:25) मौजूद है कुकू एफएम एक बहुत ही अच्छा ऑडियो लर्निंग का प्लेट जहां पर ढेर सारे अलग-अलग टॉपिक्स पर आपको ऑडियो बुक सुनने को मिलेंगे चाहे हिस्ट्री हो ज्योग्राफी हो पॉलिटिक्स हो या फिक्शन हो अगर आपने अभी तक डाउनलोड नहीं किया है तो नीचे डिस्क्रिप्शन में एक स्पेशल डिस्काउंट 50 पर ऑफ का मिलेगा कुकू एफएम को डाउनलोड करने पर इतिहास की अगर हम बात करें तो फेमिनिज्म को तीन वेव्स में डिवाइड किया जाता है पहली फेमिनिज्म की वेव आई थी 1800 और अर्ली 1900 में यह वो समय था जब औरतों को पॉलिटिकल राइट्स देने की डिमांड उठाई गई राइट टू वोट इससे पहले औरतों को वोट

(18:58) करने का अधि नहीं दिया जाता था फ्रेंच रेवोल्यूशन में एक पॉलिटिकल एक्टिविस्ट ओलंपिक डि गक्स ने एक डॉक्यूमेंट ड्राफ्ट किया था डिक्लेरेशन ऑफ द राइट्स ऑफ वूमेन एंड ऑफ द फीमेल सिटीजन इन्हें दुनिया की वन ऑफ द फर्स्ट फेमिनिस्ट कंसीडर किया जाता है दूसरी वे फेमिनिज्म की आई 1960 के अराउंड यहां पर मुद्दा उठा घर में जेंडर डिस्क्रिमिनेशन खत्म करने का फेमस फेमिनिस्ट कैरल हेनिश के द्वारा एक स्लोगन उठाया गया इस दौरान द पर्सनल इज पॉलिटिकल यहां पर कई सारे लीगल और सोशल राइट्स औरतों को दिए गए इसके बाद आई तीसरी वे फेम जम की जो 1990 में शुरू हुई यहां पर

(19:31) मुद्दे उठे इंटरसेक्शनल फेमिनिज्म के यानी कि फेमिनिज्म सिर्फ अपर क्लास वाइट औरतों के लिए नहीं है बल्कि गरीब और ब्लैक औरतों को भी सेम अधिकार दिए जाने चाहिए लेकिन प्रॉब्लम पता है क्या है जो लड़के सोशल मीडिया पर अल्फा मेल बने घूमते हैं वो फेमिनिज्म की बात करते हुए इनमें से किसी भी चीज की बात नहीं करेंगे वो फेमिनिज्म का मजाक बनाएंगे इन फिल्मों का इस्तेमाल करके जब देखो इन फिल्मों को ही फेमिनिज्म से कंपेयर किया जाता है जैसे कि फेमिनिज्म का मतलब और कुछ नहीं बल्कि यही फिल्में है जब मैंने एनिमल फिल्म के ऊपर वीडियो बनाया

(20:01) तो कुछ लोगों ने कहा कि ये क्रिटिक्स हमेशा एनिमल और कबीर सिंह जैसी फिल्मों को क्यों क्रिटिसाइज करते रहते हैं ऐसी फिल्मों को क्यों नहीं क्रिटिसाइज किया जाता लेकिन एक्चुअली में अगर आप क्रिटिक्स के रिव्यूज देखोगे इन फिल्मों को लेकर क्या है मैंने एनिमल वाले वीडियो में दो फिल्म क्रिटिक्स का नाम लिया था अनुपमा चोपड़ा और सुचिता त्यागी मैंने अनुपमा चोपड़ा का फोर मोर शॉट्स का रिव्यू देखा शो के पहले दो सीजंस को लेकर उनका कुछ ऐसा कहना था आई नेवर मेड इट पास्ट एपिसोड टू ऑफ सन वन ऑफ फम शॉ प्लीज अपने पोर्टल फिल्म कंपनियो में लिखे गए रिव्यू में

(20:33) उन्होंने कहा कि यह एक सुपरफिशियल फॉर्म ऑफ फेमिनिज्म दिखाता है ये टीवी शो एक पुरली रिटन टीवी शो है ये थैंक यू फॉर कमिंग फिल्म को लेकर सुचिता का क्या कहना था कि ये फिल्म एक लार्जली अनवाचेबल फिल्म है थैंक यू फॉर कमिंग इज अ फिल्म ओनली मास्क ंग एज अ फेमिनिस्ट रम वाइल मोस्टली बीइंग अ मास्कुलीन गेज ऑन हाउ मेमन प्रोबेबली मे बी लिव देयर लाइव्स यह अपने आप को एक फेमिनिस्ट रोम के तौर पर दर्शाती है लेकिन यह सफर करती है एक मैस्क्युलिन गेज से जो इंसान फेमिनिज्म को ढंग से समझता है उसके लिए यह बात बड़ी ओबवियस है कि इन फिल्मों का फेमिनिज्म से दूर-दूर तक

(21:05) कुछ लेना देना नहीं है यह बात सच है कि फिल्म के प्रोड्यूसर्स जबरदस्ती फेमिनिज्म जैसे शब्दों को फिल्म में डाल रहे हैं लेकिन जो फिल्म में दिखाया जा रहा है उसका फेमिनिज्म से कुछ लेना देना नहीं है फेमिनिज्म का मतलब ये नहीं होता कि औरतें जाकर शराब पीने लगे स्मोक करने लगे आदमियों को ऑब्जेक्टिफाई करने लगे ये फेमिनिज्म नहीं है एक्चुअली में जो असली फेमिनिस्ट फिल्में हैं उनकी कोई कमी नहीं है बॉलीवुड में लेकिन फर्क बस यह है कि सोशल मीडिया पर यह अल्फा बने लड़के जो घूमते हैं फेमिनिज्म को उन फिल्मों के साथ रिलेट नहीं करेंगे जैसे कि यह पिंक फिल्म

(21:35) यह एक असली फेमिनिस्ट फिल्म है इसमें क्लियर दिखाया गया है कि शराब पीने का मतलब यह नहीं है कि वुमेन एंपावरमेंट हो गई लेकिन प्रॉब्लम यह है कि जब एक आदमी शराब पीता है उसकी लिवर पर इफेक्ट पड़ता है लेकिन जब एक औरत शराब पीती है तो उसके लिए यह कैरेक्टर सर्टिफिकेट बन जाता है इसके अलावा फिल्में है द ग्रेट इंडियन किचन तुम्हारी सुल्लू क्वीन इंग्लिश विंग्लिश डोर मिर्च मसाला ऐसी फिल्मों की कभी बात नहीं कर करेंगे ये लोग फिर फिल्में है थप्पड़ जैसी ये एक ऐसी फिल्म है जिसे कई अल्फा मेल्स ने क्रिटिसाइज किया था कहकर कि भाई सिर्फ एक थप्पड़ की

(22:05) वजह से डिवोर्स ले लिया यह तो रियलिस्टिक नहीं है ऐसा असली में नहीं हो सकता किसी को नहीं करना चाहिए ये लेकिन सोच कर देखो अगर कहानी रिवर्स होती एक पार्टी के अंदर एक वाइफ अपने हस्बैंड को थप्पड़ मार देती सबके सामने तो यही सेम लोग कहते कि भाई ये तो डिवोर्स का कारण है इसकी वजह से डिवोर्स होना चाहिए अच्छा फिर एक वो बड़ा पॉपुलर मीम आता है नेहा धूपिया वाला रोडीज के एक एपिसोड में जब उन्होंने कहा था कि इट्स हर चॉइस इट्स हर चॉइस ऑफ कोर्स या नोबडी गिव्स यू द राइट टू स्लैप अ गर्ल जब लड़के ने कुछ गलत किया तो उसे क्रिटिसाइज

(22:37) किया गया लेकिन एक दूसरे एपिसोड में जब लड़की ने वही चीज करी तो नेहा ने जस्टिफाई करके कहा इट्स हर चॉइस इस चीज को लेकर नेहा को काफी क्रिटिसाइज किया गया उनका मजाक उड़ाया गया और ओबवियस सी बात है कि यह बड़ी हिपोक्रिटस चीज थी जो उन्होंने कही थी लेकिन पता है क्या ये ज्यादातर अल्फा मेल छपरी लड़के जो कई लड़कों को आपने देखा होगा इस चीज को शो ऑफ करते हुए कि एक मेरी दिल्ली वाली एक मेरी मुंबई वाली एक पंजाब वाली और फिर मीम्स चलाते हैं यह बॉयज विल बी बॉयज मेन विल बी मेन लेकिन अगर लड़की दूसरी तरफ से चीटिंग कर ले तो वो इन्हें बर्दाश्त नहीं

(23:12) होता वो थोड़ा ज्यादा हो जाता है इनके लिए वो टॉक्सिक फेमिनिज्म बन जाता है लेकिन दूसरी तरफ क्या है बॉयज विल बी बॉयज जब लड़के कर ले तो बॉयज विल बी बॉयज दोनों तरफ से यहां हिपोक्रिटस यहां पर गलत है लेकिन क्या किसी फेमिनिस्ट ने कभी कहा कि नेहा धूपिया ने जो कहा था वो सही ही कहा था किसी ने भी नहीं कहा लेकिन बार-बार फेमिनिज्म को उसी स्टेटमेंट से रिलेट करने की कोशिश करी जाती है गलत चीजों से रिलेट करने की कोशिश करी जाती है एक ये लखनऊ में केस हुआ था जहां पर एक लड़की ने किसी लड़के के साथ मिसबिहेव किया था बार-बार उसे मारा था पता चला कि अपेरेंटली वो

(23:44) लड़की अमीर परिवार की थी लड़का गरीब खानदान से आता था और ये बहुत गलत चीज थी जो करी गई थी किसी को भी मारना सही नहीं है लेकिन क्या किसी फेमिनिस्ट ने इस लड़की को अपना सपोर्ट दिखाया किसी ने भी नहीं दिखाया लेकिन फिर भी बार-बार सोशल मीडिया पर क्या दिखाया जाता है कि ये देखो ये है फेमिनिज्म ये है फेमिनिज्म आखिर क्या कारण है कि ये छपरी गैंग बार-बार फेमिनिज्म को इन प्रोब्लेमे िक चीजों से रिलेट करता है और जो असली फेमिनिज्म है उसकी कभी बात ही नहीं करता कारण बड़ा सिंपल है यह नहीं चाहते कि इक्वल राइट्स मिले आदमी और औरतों को ये उसी पेट्रिया कल माइंडसेट को बढ़ावा

(24:16) देना चाहते हैं और पूरी फेमिनिस्ट मूवमेंट को डिस्क्रेडिट करना चाहते हैं यही लोग झूठ फैलाते हैं कि फेमिनिस्ट सभी आदमियों को हेट करती हैं फेमिनिस्ट चाहते हैं कि औरतें हमेशा सभी आदमियों को छोड़ के चली जाए लेकिन असली फेमिनिज्म जो मैंने इस वीडियो के फर्स्ट हाफ में आपको बताया उसकी कभी बात नहीं करी जाएगी तो उम्मीद है दोस्तों आपको इस वीडियो से काफी क्लियर हुआ होगा कि फेमिनिज्म का असली मतलब क्या है और स्मैश पेट्रिया की आदमियों के लिए लड़कों के लिए भी क्यों जरूरी है क्योंकि हम एक ऐसी दुनिया देखना चाहते हैं जहां पर आदमियों और औरतों को सबको फ्रीली घूमने का

(24:48) अधिकार हो इक्वल राइट्स और अपॉर्चुनिटी मिले और एक ऐसा समाज जहां पर आदमियों को प्रेशराइज नहीं किया जाता अपने इमोशंस दबाए रखने के लिए अब अगर आप इस इक्वलिटी की विचारधारा को और गहराई से समझना चाहते हैं कि इतिहास में यह लिबर्टी इक्वलिटी के आइडियाज का जन्म कैसे हुआ यह आइडियाज दुनिया भर में कैसे फैले तो इस सब की बात मैंने करी है इस वाले वीडियो में जिसमें मैंने फ्रेंच रेवोल्यूशन को डिटेल में समझाया है यहां क्लिक करके देख सकते हैं बहुत बहुत धन्यवाद

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