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50% of Indians will get this Disease! | The Next Pandemic | Dhruv Rathee

नमस्कार दोस्तों बचपन में याद है हमारे मम्मी पापा हमसे अक्सर कहा करते थे इतना टीवी मत देखो आंखें खराब हो जाएंगी चश्मे लग जाएंगे और अफसोस आज के दिन की सच्चाई पता है क्या है चश्मे लग गए करोड़ों बच्चों को चश्मे लग गए र साइड किड चिल्ड्रन आर हैविंग ट्रबल सी थट आर फार अवे निर साइटेडनेस इक्र इन किड अगर आपकी दूर की नजर कमजोर है इसका मतलब है कि आपको नियर साइटेडनेस है साइंटिफिक भाषा में इसे माप मायोपिया मायोपिया मायोपिया कहा जाता है और इसको लेकर जो डाटा है वो बहुत ही शॉकिंग है इंडिया में 5 से 15 साल के बच्चों के एज ग्रुप की अगर हम बात करें तो मायोपिया का

50% of Indians will get this Disease! | The Next Pandemic | Dhruv Rathee

(00:40) रेट आज से 20 साल पहले 45 पर हुआ करता था आज यही नंबर 21 पर क्रॉस कर गया है यानी कि देश में रहने वाले हर पांच में से एक बच्चे को चश्मे लगे हैं आज के दिन हालत ये हो चुकी है कि मायोपिया को एक एपिडेमिक कंसीडर किया जाता है और प्रेडिक्शन करी गई है कि साल 2050 तक दुनिया में रहने वाले हर दूसरे इंसान को चश्मे लगेंगे यह सब आखिर क्यों हो रहा है अगर आपको ऑलरेडी चश्मे लग चुके हैं तो क्या आप अपनी आंखों को नेचुरल तरीके से वापस ठीक कर सकते हो और अगर आपको चश्मे नहीं लगे हैं तो स्मार्टफोन की दुनिया में कैसे आप अपनी आंखों को बचा सकते हो क्या असली कारण होते हैं

(01:14) मायोपिया के पीछे आज के वीडियो में दोस्तों इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं लेटेस्ट साइंटिफिक स्टडीज को समझते हुए इस पूरे मुद्दे को गहराई से समझने के लिए पहले हमें समझना होगा दोस्तों कि इंसानों की आंखें काम कैसे करती हैं यहां स्क्रीन पर आप एक बड़ा सिंपल सा डायग्राम देख सकते हो आंख का एक ह्यूमन आई बेसिकली एक कॉन्वेक्स लेंस की तरह काम करती है स्कूल में कॉन्वेक्स लेंस के बारे में तो पढ़ा ही होगा आपने ये वो लेंसेक्स पॉइंट पर सारी लाइट रेज इकट्ठी हो जाती है लेंस से पास होने के बाद एक नॉर्मल इंसान की आंख में जो ये फोकल पॉइंट

(01:57) होता है ये आंख का बैक वाला हिस्सा होता है जिसे रेटिना कहा जाता है अगर आपकी आंखें सही तरीके से काम कर रही हैं तो जो भी लाइट आपकी आंखों के अंदर आती है वह सबसे पहले कॉर्निया पर लगती है जो आउटर मोस्ट लेयर है फिर प्यूप के थ्रू होती हुई वो एक लेंस के थ्रू जाती है जो इंसानों के आंखों के अंदर एक लेंस है इसी रेटिना से एक ऑप्टिक नर्व कनेक्टेड होती है जो हमारे ब्रेन तक सिग्नल्स पहुंचाती है जिसकी मदद से हम एक्चुअली में देख सकते हैं अब एक इंटरेस्टिंग फैक्ट यहां पर ये है कि आपको लगेगा कि लाइट रेस को बेंड करने का काम हमारे आंखों के अंदर मौजूद ये लेंस कर रही है

(02:29)  लेकिन लेंस से भी ज्यादा काम हमारा कॉर्निया कर रहा है एक्चुअली में करीब 70 पर लाइट की बेंडिंग जो हमारी आंखों में होती है वो कॉर्निया करता है उसके बाद जो लेंस आती है वो बस थोड़ी बहुत फाइन ट्यूनिंग करती है तो इसका मतलब ये हुआ कि अगर आपकी आंखें ठीक से काम नहीं कर रही हैं तो आपकी कॉर्निया की शेप बदल चुकी है इनफैक्ट जब लोगों को मायोपिया या हाइपरोपिया होता है तो उनकी आईबॉल की शेप ही बदल जाती है इन डायग्राम्स को देखो मायोपिया में जो आईबॉल होती है वो ज्यादा खींच जाती है लोंगे हो जाती है जिसकी वजह से जो फोकल पॉइंट होता है वो रेटिना पर नहीं नहीं होता

(03:00) बल्कि रेटिना से पहले होता है फॉर्म और दूसरा केस अगर आपकी पास की नजर कमजोर है तो इसका मतलब आपको हाइपरोपिया है या फिर इसे हाइपरमेट्रोपिया भी कहा जाता है इसमें आपकी आंख पिचक सी जाती है जो पास की चीजें हैं वो ब्लरी दिखाई देती हैं क्योंकि लाइट रेज जो है वो रेटिना के बाद में कन्वर्ज हो रही हैं फोकल पॉइंट रेटिना के बाद में है एक और इंटरेस्टिंग चीज यहां ये है कि इंसानों में आमतौर पर सभी न्यूबॉर्न बेबीज की जो आंखें होती हैं वो ऑलरेडी पिचकी हुई होती है ये हाइपरोपिया वाली आंखें होती हैं तो न्यूबॉर्न बच्चे एक दो साल के जो बच्चे होते हैं

(03:29)  वो पास की चीजें अच्छे से देख नहीं पाते लेकिन धीरे-धीरे जैसे बच्चा बड़ा होता है तो आइबॉल्स सही साइज की बन जाती है इस प्रोसेस को पूरा होने में करीब दो साल का समय लगता है तो 2 साल की एज के बाद बच्चों को नॉर्मल दिखना शुरू हो जाता है अब एक सवाल यहां पर आपके मन में शायद आए कि लेंसेक्स लेंथ होती है वो तो फिक्स्ड होती है तो ऐसा कैसे कि इंसान दूर का भी देख सकते हैं और पास का भी देख सकते हैं हमें अपनी फोकल लेंथ बार-बार बदलने के लिए लेंस की शेप को भी बार-बार बदलना होगा ये बात बिल्कुल सही है और ये काम किया जाता है इंसानों की आंखों में आई मसल्स के

(04:00) द्वारा जिन्हें सिलरी मसल्स भी कहा जाता है अपनी आंखों के सामने एक बारी अपनी उंगली ऐसे दूर रख के देखो और धीरे-धीरे अपनी उंगली को देखते रहो और अपने आंखों के पास लाते रहो आप देखोगे कि कैसे आपकी आंखें पास पास पास फोकस किए जा रही हैं और आपकी जो आई मसल्स है वो और ज्यादा स्ट्रेस में है आपको फील होगा कि आंखों पर ज्यादा स्ट्रेस पड़ रहा है जैसे ही आप जितना ज्यादा पास देखना चाह रहे हो क्योंकि सिलरी मसल्स कॉन्ट्रैक्ट करती हैं पास की चीजें देखने के लिए सिलरी मसल्स के कंट्रक्शन से लेंस की शेप बदल जाती है जब आप पास की चीजें देखते हो जो लेंस है वो

(04:31) ज्यादा राउंड बन जाती है और जब आप दूर की चीजें देखते हो तो सिलरी मसल्स रिलैक्स्ड हो जाती हैं ताकि लेंस की शेप और फ्लैट आउट हो सके आंखों की इस एबिलिटी को अकोमोडेशन कहा जाता है लेकिन ऑब् वियस सिलरी मसल्स की अपनी एक लिमिट है एक लिमिट से ज्यादा वो लेंस की शेप चेंज नहीं कर सकती और जब लोगों की आईबॉल की शेप मायोपिया की वजह से वैसे ही लोंगे हो जाती है तो सिलरी मसल्स वहां ज्यादा मदद कर नहीं सकती लेकिन सवाल यहां पर यह कि लोगों को मायोपिया होता ही क्यों है कुछ लोगों की आईबॉल की शेप क्यों लोंगे हो जाती है और कुछ लोगों की नहीं होती यहां पर तीन

(05:03) अलग-अलग थ्योरी हैं पहली थ्योरी है नियर वर्क थ्योरी कुछ साइंटिस्ट ने कहा कि जितना ज्यादा समय हम बिताएंगे पास की चीजों को देखने में उतना ही ज्यादा हमारी आंखों पर स्ट्रेन पड़ेगा उतना ही ज्यादा हमारी सिलरी मसल्स को काम करना पड़ेगा और उतनी ही ज्यादा देर तक हमारी आईबॉल ज्यादा गोल बनकर रहेगी स्क्विज्ड रहेगी और जितना ज्यादा समय आईबॉल स्क्विज्ड रहेगी उतना ही ज्यादा मुश्किल हो जाएगा आईबॉल को वापस रिलैक्स कर पाना ये है नियर वर्क थ्योरी जितना समय आप बिताओ ग किताबें पढ़ते वक्त फोन के स्क्रीन को देखते हुए लैपटॉप के स्क्रीन को देखते हुए आंखों पर ज्यादा

(05:34) स्ट्रेन पड़ रहा है लेकिन इससे भी पहले एक और थ्योरी थी जिसे कई सालों तक माना जाता था कि वही असली कारण है मायोपिया के पीछे डीएनए थ्योरी साइंटिस्ट का मानना था कि कोई कारण नहीं है मायोपिया के पीछे बस ये जेनेटिक्स से रिलेटेड है आपका डीएनए बताएगा कि आपको मायोपिया होगा या नहीं होगा और ये चीज हेरेडिटरी है अगर आपके फैमिली में चली आ रही है चीज चश्मे लगे हैं सबको तो आपको भी चश्मे लगेंगे ही चाहे आप कुछ भी कर लो ये डीएनए थ्योरी साल 197 70 तक आते-आते फेल होने लगी क्योंकि 1969 में एक बड़ी इंटरेस्टिंग स्टडी करी गई अलास्का में रहने वाले आदिवासी लोगों पर

(06:07) वहां यह पाया गया कि जो मिडिल एज्ड और बुजुर्ग लोग थे अलास्का में रहने वाले उनमें तो कभी मायोपिया नहीं देखने को मिला लेकिन बच्चों में और टीनएजर्स में मायोपिया के रेट्स 50 पर से ज्यादा थे एक ही जनरेशन के अंदर इतना बड़ा बदलाव आना ये जेनेटिक्स तो इसके पीछे कारण नहीं हो सकता स्पेशली तब जब देखा गया कि जो बच्चे थे वो वेस्टर्नाइज्ड लाइफस्टाइल अडॉप्ट कर रहे थे यहां पर जन्म हुआ नियर वर्क थ्योरी का दोस्तों हालांकि ये नियर वर्क थ्योरी भी अपने आप में कोई बड़ी डिस्कवरी नहीं थी टेक्निकली 400 साल से ज्यादा पुरानी थी ये थ्योरी जब योहानेस केप्लर नाम के एक जर्मन

(06:39) एस्ट्रोन ने साल 1604 में पहली दफा सजेस्ट किया था कि यह कारण हो सकता है चश्मे लगने के पीछे जब उनको खुद चश्मे लगे थे लेकिन 1970 से ये नियर वर्क थ्योरी सबसे पॉपुलर थ्योरी बनने लगी साइंटिस्ट के बीच में ऐसा देखा जाने लगा कि जितने ज्यादा पढ़ाकू लोग हैं जितनी एकेडमिक एक पॉपुलेशन है उतने ही ज्यादा चश्मे उन लोग लोगों में देखने को मिलते हैं हिस्टॉरिकली भी ब्रिटिश डॉक्टर्स ने इस चीज को ऑब्जर्व किया था कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले जो स्टूडेंट्स थे उनमें कहीं ज्यादा मायोपिया के केसेस देखने को मिल रहे हैं एज कंपेयर्ड टू मिलिट्री रिक्रूट्स जो थे जो

(07:12) लोग आर्मी में भर्ती थे एक लेट 19 सेंचुरी की हैंडबुक में यह भी सजेस्ट किया गया था कि अगर मायोपिया को आपको ट्रीट करना है तो आपको हवा बदलने की जरूरत है एक सी वोयाज लेने की जरूरत है तो आज के दिन इसी नियर वर्क थ्योरी को एक्सटेंड किया जा सकता है स्मार्टफोंस टैबलेट्स और कंप्यूटर्स पर वही चीज जो हम हमारे पेरेंट्स कहा करते थे इतना ज्यादा टीवी मत देखो आंखें खराब हो जाएंगी पास बैठकर टीवी मत देखो आंखें खराब हो जाएंगी क्या ये चीज सच थी नियर वर्क थ्योरी एक अच्छी एक्सप्लेनेशन है लेकिन इसे प्रूफ कर पाना काफी मुश्किल रहा है

(07:42) इनफैक्ट कई लेटेस्ट साइंटिफिक स्टडीज ने इस थ्योरी में भी लूप होल्स पाए हैं 2008 में कंडक्ट करी गई ये वाली ऑस्ट्रेलियन स्टडी ने यह पाया कि एक्चुअली में इससे फर्क नहीं पड़ता कि टोटल कितना समय आप नियर वर्क चीजों में बिता रहे हो बल्कि इससे ज्यादा फर्क पड़ता है कि आपके एक सेशन की इंटेंसिटी कितनी है 2015 में एक ये मेटा एनालिसिस करी गई नियर वर्क थ्योरी पर की गई साइंटिफिक स्टडीज पर इसने पाया कि हर एक घंटा एक हफ्ते में जो आप बिताते हो नियर वर्क करने में उससे आपका मायोपिया का चांस 2 पर बढ़ जाता है यानी एक घंटा एक्स्ट्रा अगर आप पास की चीजें देख रहे हो

(08:16) किताबें पढ़ रहे हो फोन देख रहे हो लैपटॉप देख रहे हो इन सब चीजों से मायोपिया का रिस्क बढ़ रहा है लेकिन कुछ स्टडीज ने यहां इनकंसिस्टेंसीज देखनी शुरू करी इस नियर वर्क थ्योरी में कुछ साइंटिस्ट ने कहा कि क्या ये सही में इसलिए हो रहा है कि लोग नियर वर्क कर रहे हैं या इसके पीछे कोई और कारण भी हो सकता है कोई ऐसा कारण जो बहुत को रिलेटेड हो नियर वर्क करने से जिसकी वजह से मायोपिया हो रहा हो यहां आती है हमारी तीसरी और लेटेस्ट साइंटिफिक थ्योरी दोस्तों जो कि है आउटसाइड थ्योरी इस थ्योरी के अनुसार बच्चों को नियर वर्क से मायोपिया नहीं हो रहा है बल्कि

(08:45) मायोपिया इसलिए हो रहा है क्योंकि वो बाहर आउटडोर्स में कम समय बिता रहे हैं डेलाइट का जो एक्सपोजर है वो है मेन वेरिएबल मायोपिया होने के पीछे आज के दिन दोस्तों ज्यादातर साइंटिस्ट के द्वारा माना जाता है कि आउटसाइड थ्योरी ही मेन कारण है मायोपिया हो होने के पीछे 2007 में एक बहुत बड़ी स्टडी करी गई थी कैलिफोर्निया में रहने वाले बच्चों पर जिसने पाया कि एक्चुअली में बच्चे जब बाहर रहते हैं आउटडोर्स में रहते हैं उससे मायोपिया होने का रिस्क बहुत कम हो जाता है अगले साल 2008 में सिडनी में एक स्टडी करी गई 4000 से ज्यादा बच्चों पर न सालों तक इस स्टडी

(09:16) में बच्चों को ऑब्जर्व किया गया वेरिएबल देखे गए कि वो कितना बाहर खेल रहे हैं बाहर क्या कर रहे हैं अंदर है कितना नियर वर्क कर रहे हैं और सेम कंक्लूजन रीच हुआ बाहर रहकर बच्चे किन एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट कर रहे हैं क्या वो स्पोर्ट्स खेल रहे हैं वॉक करने जा रहे हैं पिकनिक मना रहे हैं या सिर्फ बाहर टहल रहे हैं इससे फर्क नहीं पड़ता फर्क बस इससे पड़ता है कि बाहर रहना जरूरी है इस थ्योरी ने इस चीज को भी प्रूफ किया कि मायोपिया को अक्सर एक डिजीज ऑफ एफ्लुएंस क्यों कहा जाता है ये एक ऐसी बीमारी है जो अमीर देशों में ज्यादा देखने को मिलती है गरीब

(09:46) देशों में कम जब इकोनॉमिक ग्रोथ होती है बच्चे ज्यादा पढ़ाई करने लगते हैं लोग ज्यादा कंप्यूटर पर काम करने लगते हैं लोग आउटडोर्स में कम समय बिताते हैं तो मायोपिया ज्यादा देखने को मिलता है जानवरों पर भी कई स्टडीज करी गई ये पता करने ने के लिए कि आंखों में एक्चुअली हो क्या रहा है जब हम बाहर समय बिताते हैं तो आंखों में क्या बदलाव आता है जिसकी वजह से मायोपिया हमें नहीं होता तो यह पाया गया कि जब हमें ब्राइट लाइट का एक्सपोजर मिलता है सनलाइट का एक्सपोजर मिलता है हमें तो हमारे रेटिना में डोपामिन की प्रोडक्शन बढ़ जाती है और डोपामिन जो है वो हमारी

(10:16) आंखों की ग्रोथ को रेगुलेट करता है हमारी आंख इतनी एलोंगटेड परमिन की कमी होगी तो आंख इलोंग्गो करना बंद करना है ह्यूमन ट्रायल्स भी किए गए इस थ्योरी को साबित करने के लिए वन ऑफ द बिगेस्ट वंस ताइवान के एक कॉलेज में किया गया जिसे साल 2020 में पब्लिश किया था ताइवान के लाखों प्राइमरी स्कूल के बच्चों को ऑब्जर्व किया गया 2001 और 2015 के बीच में 2010 में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला था ताइवान में जब उनकी सरकार ने एक प्रोग्राम शुरू किया तिएन टीएन आउटडोर 120 इस प्रोग्राम के तहत स्कूलों को कहा गया कि ये इंश्योर करो कि बच्चे कम से कम

(10:51) 2 घंटे बाहर बिताएं और इस प्रोग्राम के इंप्लीमेंट होने के कुछ ही सालों बाद एक बड़ा पॉजिटिव इंपैक्ट देखने को मिला 2012 में मायोपिया के रेट्स ताइवान में 49.4 थे इन बच्चों में और 2015 तक मायोपिया के रेट्स गिरकर 46.1 हो चुके थे यानी बच्चों ने सिर्फ दो घंटे बाहर समय बिताया हर दिन और इसी से ही चश्मे लगने कम हो गए एगजैक्टली यहां पर कितनी डेलाइट की जरूरत है जिससे रेटिना में डोपामिन प्रोडक्शन बढ़ती है यह चीज अभी भी अनक्लियर है लेकिन 10000 लक्स की जो ब्राइटनेस है इसे एक अच्छा बेंचमार्क कंसीडर किया जाता है लक्स जो है वो इल्यूमिनेंस की एक यूनिट है कितनी रोशनी है एक जगह पर

(11:28)   उसे लक्स में मेजर किया जाता है अगर आप किसी दिन बाहर निकलो जिस दिन अच्छी खासी धूप निकली हो लेकिन सिर्फ छाव में बैठे हो आप तब भी बड़ी आसानी से 10000 लक्स की ब्राइटनेस हो जाती है ट्रॉपिकल देशों में जहां डायरेक्ट सनलाइट होती है वहां पर बड़ी आसानी से 1 लाख लक्स की ब्राइटनेस भी देखने को मिलती है लेकिन अगर आप इनडोर्स में रहते हो चाहे आपने सारी खिड़की दरवाजे खोल भी रखे हो लेकिन घर के अंदर बैठे हो आप किसी भी बिल्डिंग के अंदर बैठे हो तो 1000 लक्स की ब्राइटनेस भी पार नहीं हो पाती अब आप में से कुछ लोग सोचो

(11:56) शायद कि हम आर्टिफिशली अगर इतनी लाइटें लगा दें कमरे के अंदर क्लासरूम्स के अंदर कि 10000 लक्स की ब्राइटनेस रीच हो पाए तो उससे असर पड़ेगा क्या बिल्कुल पड़ेगा लेकिन 10000 लक्स की ब्राइटनेस एक कमरे के अंदर लगाना बहुत ही मुश्किल है इतनी लाइटें लगानी पड़ेंगी आपको कमरे के अंदर और इतनी हीट प्रोड्यूस होगी उन लाइटों से कि स्पेशल एयर कंडीशनर्स की जरूरत पड़ेगी कमरे को कूल रखने के लिए और उतनी ब्राइटनेस में एक्चुअली में काम कर पाना ढंग से आसान नहीं होता तो इसलिए बेहतर यही है कि बाहर निकलो और अगर आप उन लोगों में से हो जिन्हें लगता है कि यार मैं बाहर

(12:25) जाना तो चाहता हूं लेकिन टाइम ही नहीं मिल पाता पढ़ाई और काम के बीच में तो मैं कहूंगा मेरा टाइम मैनेजमेंट कोर्स लेकर देखो इस कोर्स की खास बात यह है कि मैं हैप्पीनेस पर बहुत फोकस करता हूं इसमें रोज सुबह 5:00 बजे उठना 12-12 घंटे तक काम करना मैं इस हसल कल्चर के एडवाइस के बिल्कुल खिलाफ हूं इसलिए इस कोर्स में आप ना सिर्फ अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाना सीखो बल्कि जिंदगी के साथ अपनी लॉन्ग टर्म सेटिस्फैक्ट्रिली जिंदगी में इस्तेमाल करता हूं जिसकी वजह से मैं इतने सारे वीडियोस आपको दे पाता हूं साथ-साथ दुनिया ट्रेवल करते हो अभी तक

(12:59) जिन भी लोगों ने कोर्स लिया है उन्हें ये बहुत ही लाइफ चेंजिंग लगा है स्क्रीन पर कुछ रिव्यूज देख सकते हो और आपने अगर अभी तक जॉइन नहीं किया है तो जरूर जॉइन करके देखिए एक जबरदस्त ट्रांसफॉर्मेशन देखेंगे आप अपनी लाइफ में कूपन कोड इस्तेमाल कीजिए i40 40 पर ऑफ पाने के लिए इसका लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन में मिल जाएगा या इस क्यूआर कोड को भी आप स्कैन कर सकते हैं और बस खरीदने से पहले एक चीज याद रखना कि पूरा कोर्स इंग्लिश लैंग्वेज में है हिंदी में नहीं है ये अब अपने टॉपिक पर वापस आते हैं अच्छा एक चीज मैं यहां पर ये भी कहना चाहूंगा कि मायोपिया कोई मजाक में लेने

(13:27) वाली प्रॉब्लम नहीं है हो सकता है आप में से कुछ लोगों को लग रहा हो यार कौन सी बड़ी चीज है चश्मे ही तो लगने हैं चश्मे लगाकर सब ठीक हो जाएगा लेकिन लेटेस्ट साइंटिफिक स्टडीज ने पाया है कि मायोपिया और ब्लाइंडनेस के बीच में भी एक सिग्निफिकेंट कोरिले है इन्वेस्टिगेटिव थैल्मोर और विजुअल साइंस जर्नल में पब्लिश की गई नवंबर 2020 की एक स्टडी ने प्रिडिक्ट किया कि 2050 तक 10 पर पॉपुलेशन को दुनिया भर में हाई ग्रेड मायोपिया होगा हाई ग्रेड मायोपिया का मतलब है अगर आपके चश्मे का नंबर -6 या उससे कम है तो जितना ज्यादा आपके चश्मे का नंबर है उतनी ही

(14:00) ज्यादा आपकी आंख लोंगे केड है और हाई ग्रेड मायोपिया होने का मतलब है कि फ्यूचर में आपके अंधे होने का रिस्क बढ़ जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि जो रेटिना है वो एक फाइना इट अमाउंट में मौजूद है आंख में लेकिन अगर आंख और ग्रो करती रही और लोंगे होती रही तो ये ऐसा हो गया कि मान लो आपके पास जो ब्रेड पर बटर लगाते हो बटर की संख्या उतनी ही है लेकिन ब्रेड और बड़ी होती जा रही है तो आपको बटर को और पतला करके स्प्रेड आउट करते रहना पड़ेगा ब्रेड पर रेटीना को भी और पतला होकर स्प्रेड आउट होते रहना पड़ेगा आंख के उस एरिया पर फर्स्ट केस सिनेरियो यहां पर ये है कि

(14:30) रेटिना इतना पतला हो जाए कि वो लिटरली फटने लगे और रेटिना फट गया तो इसे रेटिनल टियर कहा जाता है और फटकर अगर ये बाहर ही निकल गया बिल्कुल तो उसे रेटिनल डिटैचमेंट कहा जाता है और ऐसे केस में आप अंधे हो जाओगे 2019 में पब्लिश की गई एक स्टडी ने बताया कि हर एक डायऑप्टर से जब आपके चश्मे का नंबर बढ़ता है आपको मायोपिक मैकुलोपैथी होने का रिस्क 67 पर से बढ़ जाता है ये एक और अनट्रीटेबल कंडीशन है जिससे आप अंधे हो सकते हो और इतना ही नहीं मायोपिक आंखों में और बाकी बीमार रियां होने के चांसेस भी बढ़ते हैं जैसे कि ग्ला कोमा 2019 में

(15:02) अमेरिकन अकेडमी ऑफ ऑपथाल्मिक फोर्स बिठाई थी ताकि लोग मायोपिया को एक ग्लोबल हेल्थ प्रॉब्लम की तरह देखने लगे लेकिन इसके एक ही साल बाद कोविड-19 का पेंडम आ गया जहां पर लॉकडाउन हुए दुनिया भर में लोगों को घर के अंदर रहने को फोर्स किया गया और इससे हालत बद से बदतर हो गई चाइना में की गई एक स्टडी ने बच्चों में मायोपिया रेट्स को कंपेयर किया पेंडम से पहले और पेंडम के बाद 2015 से 19 तक का जो समय था उसमें पाया गया कि 6 साल के बच्चों में चाइना में मायोपिया के रेट्स 5.

(15:34) 7 पर पर थे लेकिन जून 2020 में 5च महीने तक लॉकडाउन में रहने के बाद बच्चों में मायोपिया के रेट्स देखे गए तो वो 21.5 पर थे इमेजिन करो 6 साल के बच्चों में भी हर पांच में से एक बच्चे को चश्मे लग गए घर के अंदर बंद रहना बाहर आउटडोर्स में सिर्फ 5च महीने तक ना जाना उससे यह हो सकता है चाइना के लिए ये चीज एक नेशनल सिक्योरिटी की प्रॉब्लम बन चुकी है क्योंकि जब एयरफोर्स में आपको भर्ती होना होता है पायलट बनना होता है तो आपकी आंखें बिल्कुल ठीक होनी चाहिए लेकिन अगर 90 पर बच्चों को चश्मे लगेंगे तो कहां से एयरफोर्स के लिए पायलट मिलेंगे उन्हें

(16:05) इंडिया में भी हालत बड़ी तेजी से बिगड़ रही है जो डेटा मैंने आपको वीडियो के शुरू में बताया था वो 2021 की स्टडी पर बेस्ड था 5 टू 15 ईयर ओल्ड का जो एज ग्रुप है अर्बन बच्चों का साल 1999 में 4.44 पर को मायोपिया था लेकिन 2019 तक 21.15 बच्चों को मायोपिया हुआ और इसी स्टडी ने प्रिडिक्ट किया है कि 2050 तक 48.1 पर बच्चों को इंडिया में

(16:29)  मायोपिया होगा यानी शहरों में रहने वाले हर दो में से एक बच्चे को चश्मे लगेंगे तो जब बात सॉल्यूशंस की आती है तो तीनों थ्योरी को हमें यहां पर अकाउंट में लेना चाहिए ऐसा नहीं है कि डीएनए वाली थ्योरी कंप्लीट गलत है कुछ लोगों में मायोपिया एक्चुअली में जेनेटिक रीजंस की वजह से ही होता है और यह बात भी सच है कि अगर आपके पेरेंट्स को मायोपिया है तो आपके मायोपिया होने के चांसेस भी बढ़ जाते हैं लेकिन आउटसाइड वाली थ्योरी सबसे इंपॉर्टेंट थ्योरी है उससे सबसे ज्यादा असर पड़ता है उसके बाद नियर वर्क वाली थ्योरी और फिर आती है जेनेटिक्स अब हमारी जेनेटिक्स हमारे

(16:58) कंट्रोल के बाहर है तो उसको लेकर तो हम कुछ कर नहीं सकते तो जो भी हम अपनी आंखों को बचाने के लिए कर सकते हैं वो इन बाकी दो थ्योरी से रिलेटेड है हमें प्रीवेंटेटिव मेजर्स लेने चाहिए इन दोनों थ्योरी को अकाउंट में लेते हुए पहला ज्यादा से ज्यादा बाहर निकलो डेलाइट में धूप में समय बिताओ हालांकि जब आप ऐसा करो तो सनस्क्रीन लगाना मत भूलना क्योंकि सनलाइट का स्किन पर एक बुरा असर पड़ता है जिससे स्किन कैंसर के चांसेस बढ़ जाते हैं और दूसरा अपने नियर वर्क की इंटेंसिटी को कम करने की कोशिश करो ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी करो स्पोर्ट्स खेलो क्योंकि

(17:28) स्पोर्ट्स का एक डायरेक्ट असर पड़ता है आपकी आंखों पर जैसे कि टेबल टेनिस जैसा स्पोर्ट भी हुआ बैडमिंटन जैसा स्पोर्ट हुआ वहां पर आपकी आंखें दूर पर फोकस करती हैं फिर पास पर फोकस करती हैं जब बॉल या शटल पास आती है तो इससे आपकी आंखों को रिलैक्स होने का अच्छा मौका मिल पाता है आंखें हमेशा स्ट्रेन में नहीं रहती फोन पर जब आप देखते हो किताबें जब आप पढ़ते हो तो ये जो सॉल्यूशंस मैं आपको बता रहा हूं ये बाकी कई देशों ने ऑलरेडी इंप्लीमेंट भी करने शुरू कर दिए हैं साल 2018 में जी जिंग पिंग ने कहा था कि चाइना के लिए चाइल्डहुड मायोपिया को कंट्रोल करना एक नेशनल

(17:57) प्रायोरिटी बन चुकी है 201 21 में चाइना ने वीडियो गेम्स की इंडस्ट्री पर और प्राइवेट ट्यूट ंग पर क्रैक डाउन करना शुरू किया छह और 7 साल के बच्चों के लिए अब रिटन एग्जाम्स को खत्म कर दिया गया है चाइना में कुछ स्कूलों ने तो अपने डेस्क पर एक मेटल के बार्स भी लगा दिए ताकि बच्चे अपना किताबों में लिखते समय किताबों में पढ़ते समय ज्यादा पास से ना देखें किताबों को इसके अलावा वीडियो गेम्स के प्लेइंग टाइम पर रिस्ट्रिक्शंस लगाई गई हैं और फिजिकल एक्टिविटीज को प्रमोट किया गया है 2019 में सिंगापुर की सरकार ने भी कई ऐसे कदम उठाए इनकी मिनिस्ट्री ऑफ

(18:26) एजुकेशन ने थर्ड और फिफ्थ क्लास के बच्चों के लिए मिड ईयर एग्जामिनेशंस को खत्म कर दिया ताकि बच्चे किताबों में कम बल्कि बाहर खेलते हुए ज्यादा समय बिताएं प्रीस्कूल्स में आउटडोर्स टाइम को डबल किया गया कि कम से कम एक घंटा एक दिन में बच्चे बाहर खेले अच्छा ये तो सारी हुई प्रीवेंटेटिव मेजर्स उन लोगों का क्या जिनको ऑलरेडी चश्मे लग चुके हैं अनफॉर्चूनेटली ये है दोस्तों कि मायोपिया एक इरिवर्सिबल प्रॉब्लम है एक बार आपकी आंख इलोंग्गो होने से रोक सकते यही सारी चीजें करो जो मैंने कही तो आपके चश्मे का नंबर बढ़ने से रुक सकता है आपकी आंखें और ज्यादा खराब

(19:05) नहीं होएगी और हालांकि कोई नेचुरल तरीका नहीं है आंखों को वापस ठीक करने का लेकिन एक आर्टिफिशियल लेजिक सर्जरी जरूर करी जा सकती है आंखों की जिससे कि आपका विजन नॉर्मल हो जाए इस सर्जरी में किया क्या जाता है कॉर्निया की शेप बदली जाती है लेजर के जरिए बहुत ही माइक्रोस्कोपिक अमाउंट्स आपके कॉर्निया के टिश्यू का हटाया जाता है ताकि उसे उसकी शेप ऐसी हो सके कि आपकी आंखों को नॉर्मल विजन मिल सके इस पूरे प्रोसीजर को करने में सिर्फ 15 से 30 मिनट का ही समय लगता है और आंखों में एनेस्थेटिक आई ड्रॉप्स डाली जाती हैं ताकि आपको दर्द कम हो हालांकि कुछ लोगों को इस

(19:37) सर्जरी करने के बाद फिर भी थोड़ा दर्द होता है लेकिन मोटे-मोटे तौर पर कहा जाए तो ये एक सेफ प्रोसीजर है इसको कराने के बाद आपको चश्मे या कांटेक्ट लेंसेशन वापस आ जाता है हालांकि अगर वो प्रिकॉशनरी मेजर्स नहीं ली जाएंगी तो आंखें वापस खराब हो सकती हैं इसके अलावा कुछ स्पेशल आई ड्रॉप्स और कुछ स्पेशल ओपिया के प्रोग्रेशन को स्लो डाउन किया जा सकता है इन लेंसेक्सी लेंसेक्स करके पुकारा जाता है ये रात में पहनने वाली कांटेक्ट लेंसेशन एरियाज हैं वो बेसिकली थिकन हो जाते हैं लॉन्ग टर्म यूज अगर इसका किया जाए तो इससे डे टाइम में भी विजन इंप्रूव

(20:16) हो सकता है लेकिन ऑर्थो के लेंसेक्स हैं वो रिवर्सिबल है इसे लॉन्ग टर्म में यूज करते रहना पड़ेगा अच्छे रिजल्ट्स पाने के लिए कहा जाता है कि मायोपिया के प्रोग्रेशन को ये ट्रीटमेंट्स अराउंड 50 पर से धीरे कर सकती हैं लेकिन यह अभी भी चर्चा का मुद्दा है यह नई टेक्नोलॉजीज हैं और मेरी राय में पूछो तो बेस्ट तो वही प्रीवेंटेटिव मेजर्स हैं जो मैंने पहले बताए हैं हमेशा जब भी नियर वर्क आप करें ब्रेक्स लीजिए ज्यादा से ज्यादा बाहर समय बिताए वीडियो गेम्स पर कंप्यूटर्स पर कम समय बिताए और जब लॉन्ग टर्म में आप ऐसा करेंगे तो आप चश्मों से

(20:49) बच पाएंगे और अगर आपको चश्मे नहीं लगे हैं तो चश्मों को सॉल्यूशन की तरह मत ट्रीट कीजिए यह वीडियो पसंद आया तो इतनी ही डिटेल साइंटिफिक रिसर्च अब आप वेट लॉस के टॉपिक पर भी देख सकते क्योंकि मैंने इस वीडियो में इसी तरीके से वेट लॉस के इशू को समझाया है यहां क्लिक करके देख सकते हैं बहुत-बहुत    धन्यवाद

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