Impact of Magnetism | आप में चुंबक की तरह आकर्षण की शक्ति है | Harshvarrdhan Jain
जब कोई व्यक्ति वास्तविक चुंबक होता है, तभी चुंबकत्व काम करता है अर्थात आप जो होते हो वास्तविकता में, वही बनते हो। लेकिन अधिकतर लोग वो बनना चाहते हैं, जो वे हैं ही नहीं। इसलिए सबसे पहले स्वयं को पहचानो, स्वयं की प्रकृति को पहचानो, स्वयं के वास्तविक गुणों को पहचानो और स्वयं के सामर्थ्य को पहचानो। जिस दिन आपने स्वयं को पहचान कर एक वैचारिक संसार बसा दिया, उसी दिन से आपके व्यक्तित्व का प्रकाश पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करना शुरू कर देगा। इसलिए अपने प्राकृतिक स्वभाव को पहचानो। जब कोई व्यक्ति अपने प्राकृतिक स्वभाव को तराशकर दुनिया के सामने प्रदर्शन करता है, तब प्रकृति उसे असीम शक्तियों से अभिभूत करती है। कोई भी व्यक्ति तब तक सफलता के सिंहासन पर विराजमान नहीं होता है, जब तक वह सिंहासन के योग्य न हो अर्थात योग्यता को सिद्ध करना पड़ता है। बिना योग्यता के पदभार प्रकृति कभी नहीं देती है। इसलिए यदि सफलता के आसमान में उड़ान भरना चाहते हो, तो स्वयं को उड़ने के योग्य बनाओ। योग्यता स्वयं अपना परिचय देगी।
हम सभी जीते जागते चुंबक होते हैं। फिर भी अपनी आंतरिक शक्ति को मानने और पहचानने से इनकार कर देते हैं क्योंकि हम दूसरों के जैसा बनना चाहते हैं, दूसरों के जैसी तस्वीर पेश करना चाहते हैं। लेकिन यदि आपने दूसरे के जैसी तस्वीर पेश करने की कोशिश की, तो आपका अपना अस्तित्व कभी मूर्तिरूप नहीं ले पाएगा। इसलिए अपनी सीमाओं को समझकर, अपने सामर्थ्य को समझकर और अपने साहस की पराकाष्ठा को समझकर भविष्य की चुनौतियों को स्वीकार करना ही सर्वश्रेष्ठ विचार होता है, सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत होता है और सर्वश्रेष्ठ नीति होती है। हम सभी के अंदर प्रकृति ने आकर्षक की शक्ति छिपा कर रखी है, दबा कर रखी है और सुला कर रखी है। जो व्यक्ति अपनी आकर्षण शक्ति रूपी सामर्थ्य को जगाने का संकल्प ले लेता है, एक दिन उसका स्वागत स्वयं ब्रह्मांड करता हैं क्योंकि ब्रह्मांड प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ऊर्जा से जोड़ना चाहता है और जब कोई व्यक्ति ब्रह्मांड से जुड़ने का प्रयास शुरू करता है, तब ब्रह्मांड उसका चुंबकीय क्षेत्र जागृत करने में सहयोगी बन जाता है।
अधिकतर लोग सफल होना चाहते हैं, लेकिन सफल होने के लिए कुछ विशेष खोजना नहीं चाहते, सोचना नहीं चाहते और बोलना नहीं चाहते। सफलता आत्मा की तरह होती है, जो दिखाई नहीं देती है; लेकिन हर समय साथ-साथ चलती है। सफलता उसी को मिलती है, जो अपने मन में सफलता का ब्रह्मांड उठाकर घूमता है। सफलता हमारे अंदर है, उसका सिर्फ प्रदर्शन करना होता है। जो व्यक्ति सफलता की सीढ़ियां चढ़ना चाहता है, यदि उसमें सीढ़ियां चढ़ने का सामर्थ्य और साहस न हो, तो सीढ़ियां कैसे चढ़ेगा। वहीं दूसरी तरफ, जो व्यक्ति सीढ़ियां चढ़ना चाहता है, लेकिन चढ़ना नहीं जानता है। फिर भी साहस का पहाड़ इतना बड़ा हो जाता है कि बिना सीखे ही वह सीढियां चढ़ना शुरू कर देता है और एक दिन पहाड़ की चोटी के सिंहासन पर विराजमान हो जाता है। इसलिए पहले अपने अंदर सफल व्यक्तित्व को निर्मित करो और विकसित करो। उसके पश्चात प्रदर्शित करो। जब प्रदर्शन किया जाता है, तब लोगों को आपके अनुपम सामर्थ्य का प्रभाव दिखाई देता है और यह प्रभाव अनंत काल तक जीवित रहता है। आप जैसी तस्वीर दिखाते हैं, वही तस्वीर ब्रह्मांड लोगों को दिखाता है। जिसे हम सफलता का प्रतिबिंब कहते हैं।
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